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लेखनी प्रतियोगिता -07-Dec-2022खामोशी के अन्दर छिपा एख बिद्रोह


                 खामोशी के अन्दर का छिपा एक विद्रोह
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                   रिया ख़ामोश प्रवृत्ति के कारण  मायके से लेकर ससुराल तक कभी प्रशंसा, तो कभी व्यंगबाण झेलती रही.। वह  चाहकर भी किसी बात का प्रत्युत्तर नहीं दे पाती थी. बस, हर स्थिति में सामंजस्य बिठाकर चुप्पी ओढ़ लेती. उसकी इसी प्रवृत्ति का फ़ायदा जीवनभर उसके  पति और उनके बाद उसके  पुत्र ने उठाया. इन सब बातों को सोचने के लिए वह आज क्यों विवश हो गयी थी ? आज लगता है कि शालू की  शादी रोहित  से कराकर उसने बड़ी भारी भूल की।

        रोहित ने  अपने पिता का स्वभाव पाया था. वही शक्की मिज़ाज, वही अहंकारपूर्ण व्यवहार, वही हृदय को भेद देनेवाले कटीले व्यंगबाण कहना। आज  उसको रह-रहकर पश्‍चाताप हो रहा है। मै कैसे भूल गयी कि बबूल के पेड़ पर आम नहीं लगते। आशू के पिता शुरू से ही अक्खड़ क़िस्म के व्यक्ति थे। लोक-लाज और रिया की  ख़ामोश प्रवृत्ति ने कभी उसे उनसे विद्रोह नहीं करने दिया।

          आज वही भूल उसके  हृदय को शूल बनकर चुभ रही थी। अपनी इस भूल का एहसास शायद जीवनभर उसे न हो पाता, यदि वह रोहित की शादी शालू से न कराती।

     रोहित आए दिन शालू को किसी न किसी बात पर डांटता-फटकारता रहता। शालू गृहकार्य में निपुण पढ़ी-लिखी लड़की थी। रोहितउसके हर काम में दोष निकालता रहता। शायद इसके पीछे मुख्य कारण  शालू का सौंन्दर्य था।

      रोहित अपने साधारण व्यक्तित्व की तुलना में शालू का आकर्षक व्यक्तित्व देखकर अक्सर कुढ़ता रहता था. यही कारण था कि कभी शालू उसे चरित्रहीन लगती, तो कभी फूहड़. उसे नीचा दिखाकर  रोहित के अहम् को संतुष्टि मिलती थी।

           यह वही रोहित है जिसने अपने दोस्त  की शादी में शालू को देखकर माँ से  कहा था कि वह  किसी भी तरह उसकी शादी शालू से करा दे।. तब उसने स्वयं की तुलना उससे क्यों नहीं की थी? तब उसने क्यों अपने साधारण व्यक्तित्व को अनदेखा कर दिया था? रोहित की सरकारी नौकरी और ऊंचे ओहदे ने उसकी सारी कमियों को ढंक लिया तथा शालू  के पिता ने रिश्ता स्वीकार कर लिया। इस तरह शालू इस घर-आंगन में आ गयी।

          शुरुआती दिन हंसी-ख़ुशी से बीते, लेकिन धीरे-धीरे रोहित के भीतर का ज़हर बाहर आने लगा और एक-एक करके उसके पिता की सारी विशेषताएं उसमें प्रकट होने लगीं।

      यदि कोई मित्र या सम्बन्धी शालू की प्रशंसा कर देता। उस समय तो वह हंस देता, लेकिन बाद में बेचारी को न जाने कितनी खरी-खोटी सुनाता था। वह बेचारी मुंह सिए निर्दोष होकर भी सब कुछ सुनती रहती। अचानक किसी पर नज़र पड़ जाती, तो उसके पीछे ही पड़ जाता कि वह जान-बूझकर उस व्यक्ति को देख रही है।

          मुझे वह जानता था कि मां तो गूंगी है. वो तो कुछ बोलेगी नहीं. मुझे इस बात का बेहद अफ़सोस था कि मैं तो मैं, मेरी बहू भी गूंगी आ गयी थी। 
        रोहित  उसे जली-कटी सुनाता रहता और वह सुनती रहती। रिया की  समझ में ये नहीं आया कि उसके  बेटे में उसकी  प्रवृत्ति के बजाय अपने पिता की प्रवृत्ति ही क्यों मुखर हुई थी। न जाने कितनी बार उसने अपने पिता के सन्मुख रिया को नीची गरदन किए अपशब्द सुनते देखा थ। लेकिन उसने कभी अपने पिता का विरोध नहीं किया।

     कभी अपनी माँ को नहीं कहा कि ‘मां तुम ये सब क्यों सहन करती हो. तोड़ दो अपना मौनव्रत, मैं तुम्हारे साथ हूं. वह मां होकर भी पुत्र से वंचित थी।

       आज फिर वह न जाने किस बात पर बहू पर गरज-बरस रहा था. रिया ने  उनके कमरे का दरवाज़ा थोड़ा-सा खोला। रोहित  पलंग पर बैठा शालू  को लताड़ रहा था और वह बेचारी चुपचाप खड़ी उसकी जहरीली बातें सुन रही थी।

       रिया को ऐसा लगा जैसे शालू  के स्थान पर वह  खड़ी है और रोहित  के स्थान पर उहको  उसके पिता नज़र आने लगे। रिया ने दरवाज़ा ज़ोर से धकेलकर खोल दिया और बोली," ‘‘ख़बरदार रोहित जो अब बहू को एक शब्द भी कहा. तू यह न समझ लेना कि अगर बहू तुम्हारी बातें सहन कर रही है, तो उसमें कमी है या वह कमज़ोर है. सुन्दरता चरित्रहीनता का कारण नहीं होती. तुम ये बात अच्छी तरह जानते हो। जानते-बूझते भी तुम्हें अपनी पत्नी के चरित्र पर सन्देह करते शर्म नहीं आती।

          शालू  केवल तुम्हारी पत्नी नहीं है, बल्कि बहू के रूप में मेरी बेटी भी है. इस घर की मान-मर्यादा है. आज के बाद बहू पर किसी भी तरह की तोहमत लगाई, तो मुझसे बुरा कोई न होगा. आज से इसे अकेली न समझना। "’


          रोहित आश्‍चर्य से अपनी माँ की ओर देख रहा था।  एक शब्द में उत्तर देनेवाली मां से इतने बड़े भाषण की उसे उम्मीद नहीं थी.। शालू  अपनी सास से  लिपटकर रो रही थी। रिया को ऐसा लगा जैसे उसके सिर से बड़ा भारी बोझ उतर गया हो।

           " चल बहू, अपना सम्मान खोकर अगर किसी रिश्ते को जीवित रखा भी तो क्या रखा.’’ इतना कहकर वह शालू को लेकर अपने कमरे में  लेकर आ गई। आज  रिया ने  अपनी खोई हुई आवाज़ को पा लिया है।     आज महसूस किया कि यदि लड़ाई अपने हक़ की है, तो आवाज़ उठाना ग़लत नहीं है. अगर हम सच्चे हैं, तो उस सच्चाई के आगे एक न एक दिन सबको झुकना ही होगा।

           "आज के बाद मैं तुम्हारे चेहरे पर ये उदासी न देखूं.’’ मैं धीरे-धीरे शालू को समझा रही थी। आज मेरी ज़िन्दगी ने करवट ली थी। सब कुछ बदला-बदला-सा लग रहा था और इस बदलाव को महसूस कर रोहित भी  ख़ुद क्षमा मांगकर शालू  को ले जाएगा, ऐसा मेरा विश्‍वास है। सोचते-सोचते रीया के  होंठों पर गहरी मुस्कुराहट आ गई

      इसके बाद रोहित ने अपनी माँ व शालू से छमां मागी। और बायदा किभविष्य में ऐसा कुछ नहीं घटित होगा। 

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4 Comments

Parangat Mourya

08-Dec-2022 06:01 PM

Behtreen 🙏🌸

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Abhinav ji

08-Dec-2022 08:01 AM

Very nice 👍

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Mohammed urooj khan

07-Dec-2022 06:12 PM

👌👌👌👌

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